वांछित मन्त्र चुनें

स॒दा॒पृ॒णो य॑ज॒तो वि द्विषो॑ वधीद्बाहुवृ॒क्तः श्रु॑त॒वित्तर्यो॑ वः॒ सचा॑। उ॒भा स वरा॒ प्रत्ये॑ति॒ भाति॑ च॒ यदीं॑ ग॒णं भज॑ते सुप्र॒याव॑भिः ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sadāpṛṇo yajato vi dviṣo vadhīd bāhuvṛktaḥ śrutavit taryo vaḥ sacā | ubhā sa varā praty eti bhāti ca yad īṁ gaṇam bhajate suprayāvabhiḥ ||

पद पाठ

स॒दा॒ऽपृ॒णः। य॒ज॒तः। वि। द्विषः॑। व॒धी॒त्। बा॒हु॒ऽवृ॒क्तः। श्रुत॒ऽवित्। तर्यः॑। वः॒। सचा॑। उ॒भा। सः। वरा॑। प्रति॑। ए॒ति॒। भाति॑। च॒। यत्। ई॒म्। ग॒णम्। भज॑ते। सु॒प्र॒याव॑ऽभिः ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:44» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:12


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (श्रुतवित्) श्रुत को जाननेवाला (तर्य्यः) जो तैरा जाता वा तैरने के योग्य (सचा) सम्बन्धी (बाहुवृक्तः) बाहुओं से दुष्टों का नाश करनेवाला (यजतः) सत्कर्ता (सदापृणः) सदा तृप्ति करनेवाला (सुप्रयावभिः) उत्तम प्रकार चलनेवालों से (द्विषः) धर्म्म के द्वेष करनेवालों का (वि, वधीत्) विशेष करके नाश करता है (च) और जो (वः) आप लोगों को (प्रति, एति) प्राप्त होता वा विशेष करके जानता है, सत्य (भाति) प्रकाशित होता वा सत्य को प्रकाशित करता और (गणम्) समूह का (भजते) सेवन करता है (सः) वह (उभा) दोनों (वरा) श्रेष्ठ सुनने और सुनानेवालों का (ईम्) ही सत्कार कर सकता है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो बहुत शास्त्रों को सुननेवाले, न्याय का आचरण करनेवाले जन दुष्टों का नाश करते हुए श्रेष्ठों का पालन करते हैं, वे सदा प्रसन्न होते हैं ॥१२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यद्यः श्रुतिवित्तर्य्यः सचा बाहुवृक्तो यजतः सदापृणस्सुप्रयावभिर्द्विषो वि वधीद्यश्च वः प्रत्येति सत्यं भाति गणं भजते स उभा वरें सत्कर्त्तुं शक्नोति ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सदापृणः) यः सदा पृणाति तर्पयति सः (यजतः) सत्कर्त्ता (वि) (द्विषः) धर्मद्वेष्टॄन् (वधीत्) हन्ति (बाहुवृक्तः) यो बाहुभ्यां दुष्टान् वृङ्क्ते छिनत्ति (श्रुतवित्) यः श्रुतं वेत्ति (तर्य्यः) यस्तीर्यते तरितुं योग्यः (वः) युष्मान् (सचा) सम्बन्धी (उभा) उभौ (सः) (वरा) श्रेष्ठौ श्रोताश्रावकौ (प्रति) (एति) प्राप्नोति विजानाति वा (भाति) प्रकाशते प्रकाशयति वा (च) (यत्) यः (ईम्) एव (गणम्) समूहम् (भजते) सेवते (सुप्रयावभिः) ये सुष्ठु प्रयान्ति तैः ॥१२॥
भावार्थभाषाः - ये बहुश्रुतो न्यायाचरणा दुष्टान् घ्नन्तः श्रेष्ठान् पालयन्ति ते सदा प्रसन्ना भवन्ति ॥१२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे बहुश्रुत, न्यायकर्ते, दुष्टांचे नाशकर्ते, श्रेष्ठांचे पालनकर्ते असतात ते सदैव प्रसन्न असतात. ॥ १२ ॥